
संपादित, अजय शर्मा ।
“आज मैं आपको एक मेंढक की कहानी सुनाने वाला हूँ, एक बार की बात है। एक गाँव में एक पुराना कुआँ था, जिसमें भोला नाम का एक मेंढक रहता था। वह सालों से उस कुएँ में रह रहा था। वो उस कुएँ से कभी बाहर नहीं गया था। उसके लिए वही उसकी पूरी दुनिया थी। उसके अपने साथ रहने वाले मेंढ़कों मे ही अपनी पूरी दुनिया नजर आती । यह मानों को भोला अन्धों में काणा राजा था। साथी मेढ़क रोज भोला की चमचागीरी करते, भोला स्वंय को कुए का राजा समझने लगा । अचानक एक दिन, समुद्र में रहने वाला एक मेंढक, कोला, कूदता-फुदकता उसे कुँए में आ गिरा। भोला ने कोला से पूछा कि तुम कहा सें आए हो तो कोला बोला मैं तो समुद्र में रहने वाला मेढ़क हूं।
“तो क्या तुम्हारा समुद्र इस कुँए जितना बड़ा है,” भोला ने कोला से पूछा।
“लगता है तुम मज़ाक कर रहे हो, समुद्र कुँए से बहुत बड़ा होता है,” कोला बोला।
“मैं नहीं मानता, मेरे कुएँ से बड़ा और कुछ भी नहीं हो सकता,” भोला ने कहा।
“लगता है तुम्हें समुद्र की सैर करानी ही पड़ेगी,” कोला ने कहा और भोला को पकड़कर एक ऊँची छलांग लगाई और दोनों कुँए से बाहर आ गए।
भोला पहली बार कुएँ से बाहर आया था। इतनी रोशनी, हरियाली, रंग-बिरंगे फूल, अनेक प्रकार के पशु-पक्षी को देखकर भोला हैरान रह गया।
कोला उसे अपने साथ समुद्र के किनारे ले गया। इतने बड़े समुद्र को देखकर भोला की आँखे, खुली की खुली रह गईं।
“मैंने आज तक इतना बड़ा समुद्र नहीं देखा। तुम सच कह रहे थे यह तो मेरे कुएँ से बहुत-बहुत ज़्यादा बड़ा है।”
भोला ने फैसला किया किया कि वो अब अपने कुएँ में वापिस नहीं जाएगा बल्कि समुद्र में तैरकर यह पता लगाएगा कि समुद्र कितना अनोखा है।
तब कोला ,भोला से बोला तुम भी अपनी इस छोटी सी दुनिया से बाहर निकलोगे तो जानोगे कि दुनिया कितनी बड़ी और खूबसूरत है और यहाँ जानने और सीखने के लिए कितना कुछ है। और कोला मेढ़क ने भोला को समझाया कि चमचों सें दूर रहो।